मंगलवार, 14 जून 2011

पहेली - 7 (परिणाम) (भीमकाली मंदिर, सराहन, हिमाचल प्रदेश)

ब्लॉग जगत के प्रिय मित्रो आप सबको प्रणाम !

हम आपकी सेवा में हाजिर हैं पहेली - 7 का जवाब लेकर।

पहेली का सही उत्तर है

भीमकाली मंदिर, सराहन, हिमाचल प्रदेश

भीमकाली मंदिर – परंपरा की शक्ति:- हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से १८०

किलोमीटर दूर सराहन में स्थित है, भीमकाली मंदिर जो की ५१ शक्तिपीठों में

से एक है यह तात्कालीन देवी बुशहर राजवंश

की कुल देवी है जिनका पुराणों में उल्लेख मिलता है |



समुन्द्र ताल से २१६५ मीटर की ऊँचाई पर बसे सराहन गाँव को प्रकृति ने

पर्वतों की तलहटी में उत्पन्न सुन्दर ढंग से सुसज्जित दिया है

सराहन को किन्नोर का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है यहाँ से ७

किलोमीटर नीचे सभी बाधाओं पर विजय पाकर लांघती और आगे

बढती सतलज नदी है, इस नदी के चारों ओर हिमाचादित श्रीखंड

पर्वत श्रृखंला है समुन्द्र ताल से पर्वत की ऊँचाई १८,५०० फुट से

अधिक है माना जाता है की यह लक्ष्मी के माता-पिता का निवास

स्थान है ठीक इस पर्वत के सामने सराहन की अमूल्य सांस्कृतिक

वैभव का प्रतीक है भीमकाली मंदिर अद्वितीय छठा लिए स्थित है |



राजाओं का यह निजी मंदिर महल में बनवाया गया था जो अब

एक सार्वजनिक स्थल है


मंदिर के परिसर में भगवान रघुनाथ, नरसिंह और पाताल भैरव (लाकंडा वीर) के

अन्य महत्वपूर्ण मंदिर भी हैं लाकंडा वीर को माँ भगवती का गण मन

जाता है यह पवित्र मंदिर लगभग सभी और से सेबों के बागों से

घिरा हुआ है और श्री खंड को पृष्टभूमि से

इसका सौंदर्य देखते ही बनता है |

सराहन गाँव बुशहर रियासत की राजधानी रहा है इस रियासत की सीमाओं में

पूरा किन्नर देश ही कैलाश है सराहन में एक ही स्थान पर भीमकाली के

दो मंदिर हैं प्राचीन मंदिर किसी कारणवश टेढा हो गया है इसी के

साथ नया मंदिर पूरानी मंदिर की शैली पर बनाया गया है

यहाँ १९६२ में देवी मूर्ति की स्थापना हुई इस मंदिर परिसर

में तीन प्रांगण आरोही क्रम में बने हैं जहाँ देवी शक्ति के अलग अलग

रूपों को मूर्ति के रूप में स्थापित किया गया है देवी भीमा की

अस्ट्धातु से बनी अस्ट्भुजा वाली मूर्ति सबसे उपर के प्रांगण में है भीमकाली

मंदिर हिंदू और बांध शैली में बना है

जिसे लकडी और पत्थर की सहायता से तैयार किया गया है पगोडा आकार की

छत वाले इस मंदिर में पहाड़ी शिल्पकारों की दक्षता देखने को मिलती है द्वारों

पर लकड़ी को सुन्दर छिलाई करके हिंदू देवी देवताओं के कलात्मक चित्र बनाये

गए हैं फूल-पत्तियों भी दर्शाये गए हैं मंदिर की ओर जाते हुए जिन बड़े-बड़े

से गुज़ारना पड़ता है उन पर चांदी के बने उभरे रूप में कला के सुंदर नमूने देखे

जा सकते हैं भारत के अन्य भागों की तरह सराहन में देवी पूजा बड़ी

धूमधाम से की जाती है विशेषकर चैत और अश्विन नवरात्रों में

मकर सक्रांति, राम नवमी, जन्माष्टमी, दशहरा और शिवरात्रि

अदि त्यौहार भी बड़े हर्सोल्लास व श्रद्धा से मनाये जाते हैं |

हिमाचल प्रदेश के भाषा व संस्कृति विभाग के एक प्रकाशन के अनुसार बुशहर

रियासत तो बहुत पूरानी है ही, यहाँ का शैल

(स्लेट वाला पत्थर) भी अत्यंत पुराना है

भुगर्थ वेत्ताओं के अनुसार यह शैल एक अरब ८० करोड़ वर्ष का है और पृथ्वी के

गर्भ में २० कि०मी० नीचे था ठंडा, शीतल जलवायु वाला सराहन आज भी शायद

देवी कृपा से व्यवसायीकरण से बचा हुआ है तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों

को सुगमता से यहाँ ठहरने और खाने-पीने की सुविधाओं प्राप्त हो

जाती है हिमपात के समय भले ही कुछ कठिनाइयां आयें,

अन्यथा भीमकाली मंदिर में वर्ष भर जाया जा सकता है शिमला

से किन्नोर की ओर जानेवाली हिंदुस्तान-तिब्बत राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या २२ पर चलें

तो एक बड़ा स्थान रामपुर बुशहर आता है जहाँ से सराहन ४४ कि०मी० दूर है कुछ

आगे चलने पर न्युरी नामक स्थान से सराहन एक लिए एक अलग रास्ता जाता है

न्युरी से देवी मंदिर की दूरी १७ किमी है |

एक नजर:-

  • शिमला से सराहन की दूरी १८० किमी |

  • स्थानीय बस एवं टैक्सियां उपलब्ध |

  • हवाई रस्ते से शिमला पहुंचा जा सकता है |

  • मंदिर परिसर में साफ-सुधरे कमरों में ठहरने की व्यवस्था

  • सरकारी होटल श्रीखंड सराहन रिसोर्ट इत्यादि|

आइये अब मिलते है पहेली के विजेता से :

दर्शन लाल बवेजा जी को बहुत बहुत बधाई

अब मिलते है उन लोगो से जिनहोने इस पहेली मे भाग लेकर हमारा उत्साहवर्धन किया

गजेन्द्र सिंह

निरंजन मिश्र (अनाम)

बिग बॉस

मुकुल आनंद सिंह

विजय कर्ण

आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद

मिलते है शनिवार को एक नयी पहेली के साथ

इस बार आप के लिए है एक सर्प्राइज़

शनिवार, 11 जून 2011

पहेली - 7

ब्लॉग जगत के सभी मित्रो को आदाब और नमस्कार

नीचे दिये गए चित्र को देख कर बताए की ये कहाँ का चित्र है


जवाब देने का अन्तिम समय सोमवार शाम 07.00 बजे तक होगा।

कृपया पहेली मे पूछे गये चित्र के स्थान का सही सही नाम बतायें कि चित्र मे दिखाई गई जगह का नाम क्या है? उस राज्य का या शहर का नाम को अधूरा जवाब माना जायेगा। अपने जवाब के समर्थन में आप कोई लिंक देना चाहते है तो आप दे सकते है पर उसे आपका जवाब नहीं माना जाएगा । जगह का नाम लिखने को ही जवाब माना जाएगा ।

जरुरी सूचना:-

टिप्पणी मॉडरेशन लागू है इसलिए समय सीमा से पूर्व रोचकता बनाये रखने के लिये ग़लत या सही दोनों ही तरह के जवाब प्रकाशित किए जा सकते हैं अत: आपका जवाब आपको तुरंत यहां नही दिखे तो कृपया परेशान ना हों.

पहेली के लिए नियम इस प्रकार होंगे _

1- यह पहेली केवल मनोरंजन और थोडे बहुत ज्ञानवर्धन के लिये है। पहेली में आपके

सामने एक चित्र होगा जो भारत में कहीं का भी हो सकता है।

2- आपको बताना होगा उस चित्र में दिख रहे स्थान का क्या नाम है और वो कहाँ पर स्तिथ है

अर्थात उस राज्य का क्या नाम है। जरूरत होने पर हिंट भी प्रकाशित किया जाएगा।

3- पहेली का प्रकाशन हर शनिवार प्रातः 10.00 बजे किया जाएगा। जवाब देने का अन्तिम

समय सोमवार शाम 07.00 बजे तक होगा।

4- पहेली के परिणाम की घोषणा मंगलवार शाम 7.00 बजे की जाएगी।

5- समयसीमा के बाद प्राप्त होने वाले जवाबो को प्रकाशित तो किया जाएगा पर परिणामो

मे शामिल नहीं किया जाएगा।

6- आपका जवाब आपको यहां न दिखे तो कृपया परेशान ना हों। है, समयसीमा से पूर्व सही और

गलत दोनों तरह के जवाब प्रकाशित किए जा सकते है

7- टिप्पणी मॉडरेशन लागू है. समय सीमा से पूर्व रोचकता बनाये रखने के लिये ग़लत या

सही दोनों ही तरह के जवाब प्रकाशित किए जा सकते हैं.

8- यदि आप दिखाये गए चित्र के विषय मे कोई जानकारी रखते है तो अन्य पाठको से साझा करे

9- किसी भी तरह की विवादास्पद परिस्थितियों मे आयोजक का फ़ैसला ही अंतिम फ़ैसला होगा

10- यदि आप किसी तरह का कोई सुझाव देना चाहते है तो आपका स्वागत है ।

मंगलवार, 7 जून 2011

पहेली - 6 (परिणाम) (लौह स्तम्भ, महरौली, दिल्ली)

ब्लॉग जगत के प्रिय मित्रो आप सबको प्रणाम !

हम आपकी सेवा में हाजिर हैं पहेली - 6 का जवाब लेकर।


पहेली
का सही उत्तर है


लौह स्तम्भ, महरौली, दिल्ली

प्राचीन काल में उन्नत तकनीक और विराट ज्ञान संपदा का एक उदाहरण है अभी

तक 'जंगविहिन' दिल्ली का लौह स्तंभ'।जिसका चित्र पहेली में हमने दिखाया था.

इसका सालों से 'जंग विहीन होना ' दुनिया के अब तक के अनसुलझे रहस्यों मे माना जाता है.


सन २००२ में कानपुर के वैज्ञानिक बालासुब्रमानियम ने अपने अनुसन्धान में कुछ

निष्कर्ष निकाले थे.जैसे कि इस पर जमी Misawit की परत इसे जंग लगने से बचाती है .

वे इस पर लगातार शोध कर रहे हैं.

माना जाता है कि भारतवासी ईसा से ६०० साल पूर्व से ही लोहे को गलाने की तकनीक जानते थे.

पश्चिमी देश इस ज्ञान में १००० से भी अधिक वर्ष पीछे रहे. इंग्लैण्ड में लोहे की ढलाई का

पहला कारखाना सन् ११६१ में खुला था.बारहवीं शताब्दी के अरबी विद्वान इदरिसी ने भी

लिखा है कि भारतीय सदा ही लोहे के निर्माण में सर्वोत्कृष्ट रहे और उनके द्वारा स्थापित

मानकों की बराबरी कर पाना असंभव सा है.

विश्व प्रसिद्ध दिल्ली का 'लौह स्तम्भ'-

स्थान- दिल्ली के महरोली में कुतुबमीनार परिसर में स्थित है.

यह ३५ फीट ऊँचा और ६ हज़ार किलोग्राम है.

किसने और कब बनवाया-

गुप्तकाल (तीसरी शताब्दी से छठी शताब्दी के मध्य) को भारत का स्वर्णयुग माना जाता है .

लौह स्तम्भ में लिखे लेख के अनुसार इसे किसी राजा चन्द्र ने बनवाया था.

बनवाने के समय विक्रम सम्वत् का आरम्भ काल था। इस का यह अर्थ निकला कि उस समय

समुद्रगुप्त की मृत्यु के उपरान्त चन्द्रगुप्त (विक्रम) का राज्यकाल था.तो बनवाने वाले

चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय ही थे. और इस का निर्माण 325 ईसा पूर्व का है.


कहते हैं कि इस स्तम्भ को पीछे की ओर दोनों हाथों से छूने पर मुरादें पूरी हो जाती हैं.

परन्तु अब आप ऐसा प्रयास नहीं कर पाएंगे क्योंकि अब इसके चारों तरफ लोहे की सुरक्षा जाली है.

चलते चलते एक और बात बताती चलूँ कि बिहार के जहानाबाद जिले में एक गोलाकार स्तंभ है

जिसकी लम्बाई ५३.५ फीट और व्यास ३.५ फीट है जो उतर से दक्षिण की ओर आधा जमीन में

तथा आधा जमीन की सतह पर है.कुछ पुरातत्वविद इसे ही दिल्ली के लौह स्तम्भ का सांचा मानते है.

आईये अब मिलते हैं आज के विजेता से :-

श्री pryas जी को बहुत बहुत शुभकामनाएँ

जिन्होनें इस अंक में भाग लेकर हमारा उत्साह वर्धन किया

M

निरंजन मिश्र (अनाम)

Dr.Ajmal Khan

दर्शन लाल बवेजा

ana

बंटी "द मास्टर स्ट्रोक"

विजय कर्ण


शनिवार, 4 जून 2011

पहेली - 6

ब्लॉग जगत के सभी मित्रो को आदाब और नमस्कार

पिछले शनिवार को अपरिहार्य कारणो से पहेली का प्रकाशन नहीं हो सका उसके लिए खेद है

नीचे दिये गए चित्र को देख कर बताए की ये कहाँ का चित्र है


जवाब देने का अन्तिम समय सोमवार शाम 07.00 बजे तक होगा।

कृपया पहेली मे पूछे गये चित्र के स्थान का सही सही नाम बतायें कि चित्र मे दिखाई गई जगह का नाम क्या है? उस राज्य का या शहर का नाम को अधूरा जवाब माना जायेगा। अपने जवाब के समर्थन में आप कोई लिंक देना चाहते है तो आप दे सकते है पर उसे आपका जवाब नहीं माना जाएगा । जगह का नाम लिखने को ही जवाब माना जाएगा ।

जरुरी सूचना:-

टिप्पणी मॉडरेशन लागू है इसलिए समय सीमा से पूर्व रोचकता बनाये रखने के लिये ग़लत या सही दोनों ही तरह के जवाब प्रकाशित किए जा सकते हैं अत: आपका जवाब आपको तुरंत यहां नही दिखे तो कृपया परेशान ना हों.

पहेली के लिए नियम इस प्रकार होंगे _

1- यह पहेली केवल मनोरंजन और थोडे बहुत ज्ञानवर्धन के लिये है। पहेली में आपके

सामने एक चित्र होगा जो भारत में कहीं का भी हो सकता है।

2- आपको बताना होगा उस चित्र में दिख रहे स्थान का क्या नाम है और वो कहाँ पर स्तिथ है

अर्थात उस राज्य का क्या नाम है। जरूरत होने पर हिंट भी प्रकाशित किया जाएगा।

3- पहेली का प्रकाशन हर शनिवार प्रातः 10.00 बजे किया जाएगा। जवाब देने का अन्तिम

समय सोमवार शाम 07.00 बजे तक होगा।

4- पहेली के परिणाम की घोषणा मंगलवार शाम 7.00 बजे की जाएगी।

5- समयसीमा के बाद प्राप्त होने वाले जवाबो को प्रकाशित तो किया जाएगा पर परिणामो

मे शामिल नहीं किया जाएगा।

6- आपका जवाब आपको यहां न दिखे तो कृपया परेशान ना हों। है, समयसीमा से पूर्व सही और

गलत दोनों तरह के जवाब प्रकाशित किए जा सकते है

7- टिप्पणी मॉडरेशन लागू है. समय सीमा से पूर्व रोचकता बनाये रखने के लिये ग़लत या

सही दोनों ही तरह के जवाब प्रकाशित किए जा सकते हैं.

8- यदि आप दिखाये गए चित्र के विषय मे कोई जानकारी रखते है तो अन्य पाठको से साझा करे

9- किसी भी तरह की विवादास्पद परिस्थितियों मे आयोजक का फ़ैसला ही अंतिम फ़ैसला होगा

10- यदि आप किसी तरह का कोई सुझाव देना चाहते है तो आपका स्वागत है ।

बुधवार, 25 मई 2011

पहेली - 5 (परिणाम) (श्री द्वारकधीश मंदिर, द्वारका, गुजरात)

ब्लॉग जगत के प्रिय मित्रो आप सबको प्रणाम !

हम आपकी सेवा में हाजिर हैं पहेली - 5 का जवाब लेकर।

पहेली का सही उत्तर है
श्री द्वारकधीश मंदिर, द्वारका, गुजरात, भारत


भारत के पश्चिमी समुद्री किनारे पर बसी है पवित्र द्वारका नगरी. जिसे आज से ५००० साल पहले भगवान श्रीकॄष्ण ने मथुरा छोडने के उपरांत बसाया था. श्रीकृष्ण ने मथुरा में जन्म लिया, बाल्यावस्था गोकुल में रहे तदुपरांत राज उन्होंने द्वारका में किया. वो उस समय के इतने महाप्रतापी राजा थे कि सारे देश के राजा महाराजा उनसे सहायता और सलाह के लिये द्वारका आया करते थे. उस समय की राजनीति के सारे सूत्र उन्हीं के हाथ में थे. यहीं द्वारका से उन्होंने सारे देश के सत्ता सुत्र अपने हाथ में संभाले.

श्री द्वारकाधीष की मुर्ति


यह प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर ठीक उसी जगह है जहां कभी भगवान श्री कृष्ण का निजी महल हरि गृह था. भगवान श्री कृष्ण के अनुयाईयों के लिये यह एक एक महान और पवित्र तीर्थ है. मंदिर की पूर्व दिशा में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित देश की चार पीठों मे से एक शारदा पीठ यहीं है. पवित्र द्वारका नगरी पवित्र सप्तपुरियों में से एक मानी गई है. वर्तमान मंदिर का यह स्वरूप १६ वीं शताब्दी में अस्तित्व में आया. माना जाता है कि इस स्थान पर मुख्य मंदिर का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ द्वारा करवाया गया. जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे मंदिर का विस्तार कार्य और जीर्णोद्धार होता चला गया.


श्री द्वारकाधीश मंदिर के गर्भगृह में चाँदी के सिंहासन पर भगवान श्रीकृष्ण की श्यामवर्ण की चतुर्भुजी प्रतिमा विराजित है. यहाँ इन्हें 'रणछोड़ जी' के नाम से भी पुकारा जाता है. (वैसे भगवान श्री कृष्ण का रणछोडराय जी के नाम से प्रसिद्ध भव्य मंदिर डाकोर जी गुजरात मे है) यहां भगवान ने हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किए हुये हैं. अन्य श्री कृष्ण मंदिरों के समान ही यहां भी बेशकीमती अलंकरणों और सुंदर वेशभूषा से सजी प्रतिमा हर भक्त का मन मोहती है. द्वारकाधीश मंदिर के दक्षिण में गोमती धारा पर चक्रतीर्थ घाट है जहां से कुछ ही दूरी पर अरब सागर है जहाँ पर समुद्र नारायण मंदिर है. इसके निकट ही पंचतीर्थ है जहां पाँच कुओं के जल से स्नान करने की परम्परा चली रही है. ज्यादातर श्रद्धालु तीर्थयात्री गोमती में स्नान करके ५६ सीढ़ियाँ चढ़ कर स्वर्ग द्वार से मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं.

श्री द्वारकाधीष मंदिर, द्वारका


श्री द्वारकाधीष मंदिर एक परकोटे से घिरा हुआ है जिसमें चारों ओर एक एक द्वार है. इनमें उत्तर का द्वार मोक्ष द्वार एवं दक्षिण का स्वर्ग द्वार कहलाता है. इस आकर्षक निर्माण शैली के सात मंज़िले मंदिर का उच्च शिखर २३५ मीटर ऊँचा है जिसके उच्च शिखर पर क़रीब ८४ फुट लंबाई की बहुरंगी धर्मध्वजा फहराती रहती है. यह ध्वजा संभवत: संसार की सबसे विशालतम ध्वजा है जो पूरे एक थान कपड़े से बनाई जाती है. इस मंदिर के प्रागंण में आप घंटो मंत्रमुग्ध से बै्ठे रह सकते हैं. एक तरफ़ अरब सागर की अथाह जलराशि, ऊपर तेज हवा में फ़हराती ध्वजा और प्रांगण में भजन कीर्तन करते श्रद्धालुजन, तीर्थयात्री, देशी विदेशी पर्यटक एक ऐसा शमां बांधते हैं जैसे सारा संसार भगवान श्री कृष्ण से मिलने दौडा चला रहा है.

आईये अब मिलते हैं आज के विजेता से :-

श्री विजय कर्ण जी को बहुत बहुत शुभकामनाएँ

जिन्होनें इस अंक में भाग लेकर हमारा उत्साह वर्धन किया

Dr.Ajmal Khan

pryas

डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा

सुज्ञ

Basant Sager

ओशो रजनीश

दर्शन लाल बवेजा

Sawai Singh Rajpurohit

एक नयी पहेली के साथ शनिवार सुबह दस बजे आपसे फ़िर मिलेंगे तब

तक के लिये नमस्कार.