ब्लॉग जगत के सभी मित्रो को आदाब और नमस्कार
पिछले शनिवार को अपरिहार्य कारणो से पहेली का प्रकाशन नहीं हो सका उसके लिए खेद है
नीचे दिये गए चित्र को देख कर बताए की ये कहाँ का चित्र है
जवाब देने का अन्तिम समय सोमवार शाम 07.00 बजे तक होगा।
कृपया पहेली मे पूछे गये चित्र के स्थान का सही सही नाम बतायें कि चित्र मे दिखाई गई जगह का नाम क्या है? उस राज्य का या शहर का नाम को अधूरा जवाब माना जायेगा। अपने जवाब के समर्थन में आप कोई लिंक देना चाहते है तो आप दे सकते है पर उसे आपका जवाब नहीं माना जाएगा । जगह का नाम लिखने को ही जवाब माना जाएगा ।
जरुरी सूचना:-
टिप्पणी मॉडरेशन लागू है इसलिए समय सीमा से पूर्व रोचकता बनाये रखने के लिये ग़लत या सही दोनों ही तरह के जवाब प्रकाशित किए जा सकते हैं अत: आपका जवाब आपको तुरंत यहां नही दिखे तो कृपया परेशान ना हों.
पहेली के लिए नियम इस प्रकार होंगे _
1- यह पहेली केवल मनोरंजन और थोडे बहुत ज्ञानवर्धन के लिये है। पहेली में आपके
सामने एक चित्र होगा जो भारत में कहीं का भी हो सकता है।
2- आपको बताना होगा उस चित्र में दिख रहे स्थान का क्या नाम है और वो कहाँ पर स्तिथ है
अर्थात उस राज्य का क्या नाम है। जरूरत होने पर हिंट भी प्रकाशित किया जाएगा।
3- पहेली का प्रकाशन हर शनिवार प्रातः 10.00 बजे किया जाएगा। जवाब देने का अन्तिम
समय सोमवार शाम 07.00 बजे तक होगा।
4- पहेली के परिणाम की घोषणा मंगलवार शाम 7.00 बजे की जाएगी।
5- समयसीमा के बाद प्राप्त होने वाले जवाबो को प्रकाशित तो किया जाएगा पर परिणामो
मे शामिल नहीं किया जाएगा।
6- आपका जवाब आपको यहां न दिखे तो कृपया परेशान ना हों। है, समयसीमा से पूर्व सही और
गलत दोनों तरह के जवाब प्रकाशित किए जा सकते है
7- टिप्पणी मॉडरेशन लागू है. समय सीमा से पूर्व रोचकता बनाये रखने के लिये ग़लत या
सही दोनों ही तरह के जवाब प्रकाशित किए जा सकते हैं.
8- यदि आप दिखाये गए चित्र के विषय मे कोई जानकारी रखते है तो अन्य पाठको से साझा करे
9- किसी भी तरह की विवादास्पद परिस्थितियों मे आयोजक का फ़ैसला ही अंतिम फ़ैसला होगा
10- यदि आप किसी तरह का कोई सुझाव देना चाहते है तो आपका स्वागत है ।
पिछले शनिवार को अपरिहार्य कारणो से पहेली का प्रकाशन नहीं हो सका उसके लिए खेद है
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कृपया पहेली मे पूछे गये चित्र के स्थान का सही सही नाम बतायें कि चित्र मे दिखाई गई जगह का नाम क्या है? उस राज्य का या शहर का नाम को अधूरा जवाब माना जायेगा। अपने जवाब के समर्थन में आप कोई लिंक देना चाहते है तो आप दे सकते है पर उसे आपका जवाब नहीं माना जाएगा । जगह का नाम लिखने को ही जवाब माना जाएगा ।
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2- आपको बताना होगा उस चित्र में दिख रहे स्थान का क्या नाम है और वो कहाँ पर स्तिथ है
अर्थात उस राज्य का क्या नाम है। जरूरत होने पर हिंट भी प्रकाशित किया जाएगा।
3- पहेली का प्रकाशन हर शनिवार प्रातः 10.00 बजे किया जाएगा। जवाब देने का अन्तिम
समय सोमवार शाम 07.00 बजे तक होगा।
4- पहेली के परिणाम की घोषणा मंगलवार शाम 7.00 बजे की जाएगी।
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6- आपका जवाब आपको यहां न दिखे तो कृपया परेशान ना हों। है, समयसीमा से पूर्व सही और
गलत दोनों तरह के जवाब प्रकाशित किए जा सकते है
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8- यदि आप दिखाये गए चित्र के विषय मे कोई जानकारी रखते है तो अन्य पाठको से साझा करे
9- किसी भी तरह की विवादास्पद परिस्थितियों मे आयोजक का फ़ैसला ही अंतिम फ़ैसला होगा
10- यदि आप किसी तरह का कोई सुझाव देना चाहते है तो आपका स्वागत है ।
25 टिप्पणियाँ:
यह चित्र अशोक की लाट का है जो कि दिल्ली की कुतुब मिनार में स्थित है.
कोई पुराने किले का खंधर लगता है
पता नहीं चलेगा , कोई हिंट दे
नौघड का किला , उत्तर प्रदेश
इसे चंद्रकांता के किले के नाम से भी जाना जाता है
किले के बारे मे जानकारी :
महोबा के वीरों आल्हा व ऊदल की लोक कथाओं से लेकर टेलीविजन धारावाहिक चन्द्रकांता तक तिलिस्म व रोमांच का पर्याय रहे चुनारगढ़ के किले को लोग देखने से महरूम हैं। प्रदेश के मिर्जापुर जिले में बने चुनारगढ़ के किले में पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र चल रहा है। पुलिस कर्मियों को किले की चहारदीवारी के भीतर प्रशिक्षण तो मिल रहा है लेकिन उनके कदमों की धमक से यह जर्जर किला कब धराशाही हो जाएगा यह कोई नहीं जानता।
चुनारगढ़ का किला जिसके बारे में लोगों ने सिर्फ किताबों में पढ़ा है या फिर धारावाहिक में देखा। क्या वास्तव में किले के भीतर वह सबकुछ होता होगा जिसे वे टेलीविजन स्क्रीन पर देख रहे हैं? क्या हाथों के एक इशारे से किले की दीवार खिसक जाती होगी या फिर ताली बजाने से पैर के नीचे की फर्श से आग निकलने लगती होगी?
इन प्रश्नों के उत्तर तो वह किला ही दे सकता है जिसके बारे में लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। राजा विक्रमादित्य ने यह किला अपने बड़े भाई भर्तहरी के लिए बनवाया था। किले में उनकी समाधि आज भी विद्यमान है। वीर रणबांकुरे आल्हा का विवाह सालवा के साथ इसी किले में हुआ। किले में सालवा मण्डप के अवशेष मौजूद है। विन्ध्य पर्वत के ऊपर स्थित इस किले के साथ कई रहस्यमय कहानियां जुड़ी हुई हैं। किले को प्रसिद्धि उस वक्त मिली जब हिन्दी उपन्यासकार देवकीनन्दन खत्री ने चन्द्रकांता पुस्तक में इस किले के तिलिस्म के बारे में लिखा।
इतिहासकार कहते हैं कि उत्तर भारत पर शासन करने वाले प्रत्येक शासक के मन में यह इच्छा हमेशा रही कि वे किले पर कब्जा जमाएं क्योंकि किला सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था। मुस्लिम शासक शुआउद्दौला ने किले पर शासन किया जिसके बाद अंग्रेजों ने इसे हथिया लिया। देश की आजादी के बाद यूपी सरकार ने किले को सरकारी सम्पत्ति घोषित कर लिया जिसके बाद किले के राज व तिलस्म किले में ही दब कर रहे गए।
इतिहासकार बताते हैं कि किले के भीतर आज भी कई ऐसे राज दफन हैं जिन्हें खोजा जाए तो बहुत कुछ सामने आ सकता है। आजादी के बाद किले के कई द्वार बंद कर दिए गये। किले में कई ऐसी सुरंगे भी हैं जो उत्तर भारत के तमाम हिस्सों को किले से जोड़ती हैं। मिर्जापुर के लोग कहते हैं कि किले का तिलस्म व रहस्य आज भी बरकरार है जिस कारण वहां आम लोगों को जाना प्रतिबन्धित हैं। हालांकि सरकार तंत्र इस बात को नहीं मानता। प्रशासन का कहना है कि किले में पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र होने के कारण आम लोगों को भीतर प्रवेश की इजाजत नहीं है।
मिर्जापुर के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि उज्जैन के प्रसिद्ध सम्राट विक्रमादित्य के पश्चात् किले पर 1141 से 1191 तक प्रथ्वीराज चौहान का कब्जा रहा। उसके बाद शहाबुद्दीन गोरी 1198 में किले पर कब्जा कर लिया और लम्बे समय तक उसने उसके वंशजो ने राज किया। वर्श 1333 में स्वामीराज नाम के राजा ने किले पर अपना हक जमाया।
इस क्रम में जौनपुर के मुहम्मदशाह शर्की ने 1445 में तथा सिकन्दरशाह लोधी ने 1512 में किले पर अपना आधिपत्य साबित किया। इस वक्त तक तो किले के हालात कुछ बेहतर थे। किले की खूबसूरती व मजबूत बुर्ज आदि मौजूद थे लेकिन इससे बाद से ही किले की दुर्दशा शुरू हुई। 1529 में बाबर तथा 1530 में शेरशाहसूरी ने किले पर हक जमाया। लेखक अबुलफजल ने आईने अकबरी में किले की प्राचीनता व रहस्तय को काफी हद तक सहेजने का कार्य किया। फजल ने किले को चन्नार नाम से सम्बोधित किया है।
iron pillar , qutub minar new dehli.
Iron Pillar New Delhi - Iron pillar of mehrauli Delhi
mehrauli.delhi,kutubminat surroundings
जवाब कल सुबह 10.00 बजे सार्वजनिक कर दिया जाएगा ....
अशोक की लाट, दिल्ली , महरौली मे है
लौह स्तम्भ, दिल्ली के महरोली में कुतुबमीनार परिसर में स्थित है
लौह स्तंभ क़ुतुब मीनार के निकट (दिल्ली में) धातु विज्ञान की एक जिज्ञासा है| यह कथित रूप से राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (राज ३७५ - ४१३) से निर्माण कराया गया,
किंतु कुछ विशेषिज्ञों का मानना है कि इसके पहले निर्माण किया गया, संभवतः ९१२ ईपू में| स्तंभ की उँचाई लगभग सात मीटर है और पहले हिंदू व जैन मंदिर का एक हिस्सा था| तेरहवी सदी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मंदिर को नष्ट करके क़ुतुब मीनार की स्थापना की| लौह-स्तम्भ में लोहे की मात्रा करीब ९८% है और अभी तक जंग नहीं लगा है.
भारतीय इतिहासकार गुप्तकाल (तीसरी शताब्दी से छठी शताब्दी के मध्य) को भारत का स्वर्णयुग मानते हैं. इस काल के वैभव का प्रत्यक्षदर्शी रहा है दिल्ली का लौह-स्तम्भ. चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के शासन काल में बना यह स्तम्भ खुले आकाश में १६०० बर्षों से मौसम को चुनौती देता आ रहा है और धातु-विज्ञान में हमारी उत्कॄष्टता का ठोस प्रमाण है. iron_pillar.jpgप्रकृति में लोहा मुख्यत: इसके अयस्कों के रूप में ही उपलब्ध होता है और इन अयस्कों को करीब १५०० डिग्री सेल्सियस तापमान तक पिघलाकर लोहा तैयार करना कम से कम उस समय तो कतई आसान काम नहीं था.
लौह-स्तम्भ में लोहे की मात्रा करीब ९८% है और आश्चर्य की बात है कि अब तक इसमें जंग नहीं लग रही. इसका कारण जानने के लिये वैज्ञानिक अभी भी जुटे हुए हैं.
भारत में लोहे से सम्बन्धित धातु-कर्म की जानकारी करीब २५० ई.पू. से ही थी. बारहवीं शताब्दी के अरबी विद्वान इदरिसी ने लिखा है कि भारतीय सदा ही लोहे के निर्माण में सर्वोत्कृष्ट रहे और उनके द्वारा स्थापित मानकों की बराबरी कर पाना असंभव सा है.
पश्चिमी देश इस ज्ञान में १००० से भी अधिक वर्ष पीछे रहे. इंग्लैण्ड में लोहे की ढलाई का पहला कारखाना सन् ११६१ में ही खुल सका. वैसे चीनी लोग इसमें भारतीयों से भी २००-३०० साल आगे थे, पर लौह-स्तम्भ जैसा चमत्कार वे भी नहीं कर पाये!
लौह स्तंभ क़ुतुब मीनार के निकट (दिल्ली में) धातु विज्ञान की एक जिज्ञासा है| यह कथित रूप से राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (राज ३७५ - ४१३) से निर्माण कराया गया, किंतु कुछ विशेषिज्ञों का मानना है कि इसके पहले निर्माण किया गया, संभवतः ९१२ ईपू में| स्तंभ की उँचाई लगभग सात मीटर है और पहले हिंदू व जैन मंदिर का एक हिस्सा था| तेरहवी सदी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मंदिर को नष्ट करके क़ुतुब मीनार की स्थापना की| लौह-स्तम्भ में लोहे की मात्रा करीब ९८% है और अभी तक जंग नहीं लगा है.
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